________________
आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व हो सकता है ? ये सब बातें विचार करने लायक हैं । रूप, रस, गंध और स्पर्श-ये चार गुण पृथ्विी में हैं। रूप, स्पर्श और रस-थे तीन गुण जल में हैं। रूप और स्पर्श ये दो गुण तेज या अग्नि में हैं और एक स्पर्श गुण वायु में है। इस तरह इन भूतों के भिन्न-भिन्न स्वभाव सब को मालूम ही हैं। अगर तू यह कहे कि, जिस तरह जलसे विसदृश मोती पैदा होते देखा जाता है, उसी तरह अचेतन भूतों से चेतन की भी उत्पत्ति होती है, तो तेरा यह कहना भी उचित और ठीक नहीं है ; क्योंकि मोती प्रभृति में भी जल दीखता है तथा मोती और जल दोनों पौद्गलिक हैं ; अतः उनमें विसदृशता नहीं है। पिष्ट, गुड़ और जल आदि से होनेवाली मद-शक्ति का तू दृष्टान्त देता है; परन्तु वह मदशक्ति भी तो अचेतन है ; इसलिए चेतन में वह दृष्टान्त घट नहीं सकता। देह और आत्मा का ऐक्य कदापि कहा नहीं जा सकता; क्योंकि मरे हुए शरीर में चेतन—आत्मा उपलब्ध नहीं होता। एक पत्थर पूज्य है और दूसरे पर मल मूत्र आदिका लेपन होता है, यह गुष्टान्त भी असत् है; क्योंकि पत्थर अचेतन है। उसे सुख-दुःख का अनुभव ही कैसे हो सकता है ? इसलिए, इस देहसे भिन्न परलोक में जानेवाला आत्मा है
और धर्म-अधर्म भी हैं ; क्योंकि उनका कारण-रूप परलोक सिद्ध होता है। आग की गरमी से जिस तरह मक्खन पिघल जाता है; उसी तरह स्त्रियों के आलिंगन से मनुष्यों का विवेक सब तरह से नष्ट हो जाता है। अनर्गल और बहुत रसवाले आहार