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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र
होता है; उसी तरह वह एक जन्म के बाद दूसरा जन्म पाता है; अर्थात् जिस तरह चेतन की बाल, युवा और जरा अवस्थायें होती हैं; उसी तरह उसका मरने के बाद फिर जन्म भी होता है। जिस तरह वह बाल, युवा और वृद्धावस्था को प्राप्त होता है; उसी तरह वह मरण और पुनर्जन्म की अवस्था को भी प्राप्त होता है। पूर्व जन्म की, अनुवृत्ति के बिना, हाल का पैदा हुआ बच्चा, बिना सिखाये, माता के स्तनों पर मुंह कैसे लगाता है ? बालक को, पहले जन्म की, स्तनपान करने की बात याद रहती है; इसी से वह पैदा होते ही, बिना किसी के सिखाये, अपनी भूख शान्त करने के लिए, माता के स्तन ढूँढता और पाते ही सीखे-सिखाये की तरह उन्हें पीने लगता है। फिर यह बात भी विचारने योग्य है, कि जब इस जगत् में कारण के अनुरूप ही कार्य होता है—जैसा कारण होता है वैसा ही कार्य होता हैतब अचेतन भूतों या तत्त्वों से चेतन किस तरह पैदा हो सकता है ? अचेतन से अचेतन ही पैदा हो सकता है--चेतन नहीं । हे संभिन्नमति ! मैं तुझसे पूछता हूँ कि, चेतन प्रत्येक भूत से पैदा होता है या सब के संयोग से? प्रत्येक भूत या तत्व से चेतन उत्पन्न होता है, अगर इस प्रथम पक्षकी बातको मान लें, तो उतनी ही चेतना होनी चाहिये। अगर दूसरे पक्षको ग्रहण करते हैं, इस बात को मान लेते हैं किं, सब भूतों के संयोग से चेतन उत्पन्न होता है, तब यह संशय खड़ा हो जाता है कि, भिन्नभिन्न स्वभाव वाले भूतों से एक स्वभाव वाला चेतन कैसे पैदा