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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र होते हैं । उनके--आयुष्य केअन्तमें मरने के किनारे होने पर, एक समय प्रसव होता है; और पैदा होता है एक अपत्यका जोड़ा: यानी जोड़ली सन्तान । उस संतानका ४६ दिन तक पालन-पोषण करके, वे मरजाते हैं। उस देहको त्यागनेके बाद,वे देवगतिमें, उत्तर कुरुक्षेत्र में, उत्पन्न होते हैं। उस उत्तर कुरुक्षेत्र में स्वभावसे ही शक्करजैसी स्वादिष्ट रेती है। शरद ऋतु की चन्द्रिका के समान स्वच्छ निर्मल जल और रमणीक भूमि है । उस क्षेत्र में मद्याङ्ग प्रभृति दश प्रकार के कल्पवृक्ष हैं, जो युगलियों को मनवांछित पदार्थ देते हैं। उन में से मद्याङ्ग नामक कल्पवृक्ष मद्य देते हैं, भृङ्गाङ्ग नामक कल्पवृक्ष पात्र देते हैं, तूर्याङ्ग नामक कल्पवृक्ष मधुर रव से बजनेवाले अनेक प्रकार के बाजे देते हैं, दीप शिखाङ्ग और ज्योतिष्काङ्ग नामक कल्पवृक्ष अद्भुत प्रकाश या रोशनी देते हैं, चित्राङ्ग नाम के कल्पवृक्ष फूलमालाएँ देते हैं, चित्ररस नाम के कल्पवृक्ष भोजन देते हैं,मण्यवङ्ग नामक कल्पवृक्ष गहने और ज़ेवर देते हैं, गेहाकार कल्पवृक्ष गेह या घर देते हैं एवं अनग्न नाम के कल्पवृक्ष दिव्य वस्त्र देते हैं। ये कल्पवृक्ष नियत और अनियत दोनों प्रकारके पदार्थ देते हैं। और कल्पवृक्ष भी सब तरह के मन-चाहे पदार्थ देते हैं। वहाँ पर सब तरह के मन-चाहे पदार्थ देने वाले कल्पवृक्षों की भरमार होने से, धन-सेठ का जीव, युगुलिया-रूप में, स्वर्ग के समान विषय-सुखों को भोगने लगा।