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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व कर के, वसन्तपुर पहुँच गया। वहाँ पर उसने, थोड़े ही समय में, कितना ही माल बेच दिया और कितना ही ख़रीद लिया। इस के बाद, जिस तरह मेघ समुद्र से जल भर लाता है, उसी तरह धनसेठ, खूब धन-सम्पत्ति भरकर, फिर क्षितिप्रतिष्ठितपुरमें आया और कुछ समय के बाद, उम्र पूरी होने पर, काल-धर्म को प्राप्त हुआ; अर्थात् पञ्चत्व को प्राप्त हुआ-इस संसार से चल बसा।
दूसरा भव
सेठ का पुनर्जन्म ।
युगलियों का वर्णन। मुनि-दान के प्रभाव से, वह, उत्तर कुरुक्षेत्र में, सीता नदी के उत्तर तट की ओर, जम्बूवृक्ष के पूर्व अञ्चल में, जहाँसर्वदा एकान्त सुषम नामक आरा वर्तता है, युगलियारूप में, उत्पन्न हुआ। __ युग लिये तीन-तीन दिन के बाद लाने की इच्छा करने वाले; दो सौ छप्पन पृष्ठ करण्डक या पसलियोंवाले, तीन कोसके शरीर वाले, तीन पल्य की आयुवाले, अल्प कषाय वाले और ममता-हीन