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तीसरा और चौथा भव
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देवलोक में जन्म |
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युगलिया जन्म की उम्र पूरी करके, धन सेठ का जीव, पूर्वजन्म के दान के फल-स्वरूप, देवलोक में देवता हुआ । वहाँ से चव कर, वह पश्चिम महाविदेह-स्थित गन्धिलावती विजय में, वैताढ्य पर्वतके ऊपर, गांधार देशके गन्धसमृद्धि नामक नगर में, विद्याधरशिरोमणि शतबल नाम के राजा की चन्द्रकान्ता नाम की भाय्र्या की कोख से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । शक्तिमान् होने के कारण, उस
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का नाम महाबल रखा गया । रक्षकों द्वारा रक्षित और लालितपालित कुमार महाबल, क्रम-क्रम से, वृक्ष की तरह बढ़ने लगा । चन्द्रमा की तरह, अनुक्रम से, सब कलाओं से पूर्ण होकर, कुमार महाबल लोगों के नेत्रों को उत्सव-रूप हो गया । उचित समय आने पर, अवसर को समझने वाले माता-पिताने, मूर्त्तिमती लक्ष्मी के समान विनयवती कन्या के साथ, उस का विवाह कर दिया । वह कामदेव के तीक्ष्ण शस्त्र-रूप, कामिनियों के कर्मण-रूप और रतिके लीलावनके समान यौवनको प्राप्त हुआ। उसके पैर अनुक्रम