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________________ wwwwwwwww आदिनाथ-चरित्र ५५० . प्रथम पर्व किसी समय इसी प्रकार जलक्रीड़ाकर महाराज भरत, इन्द्रकी तरह सङ्गीत करानेके लिये विलास-मण्डपमें आये। वहाँ वंशी बजानेमें चतुर पुरुष वैसेही वंशीमें पहले मधुर स्वर भरने लगे, जैसे मन्त्रोंमें पहले ओङ्कारका उच्चारण किया जाता है। वे वंशी बजानेवाले कानोंको सुख देनेवाली और व्यञ्जन धातुओंसे स्पष्ट, पुष्पादिक स्वरसे ग्यारह प्रकारकी बंशी बजाने लगे। सूत्रधार उनके कवित्वका अनुसरण करते हुए नृत्य तथा अभिनयकी माताके समान प्रस्तारसुन्दर नामका ताल देने लगे। मृदङ्ग और प्रणव नामके बाजे बजाने वाले प्रिय मित्रकी तरह, ज़रा भी ताल-सुरमें फ़र्क नहीं आने देते हुए अपने-अपने बाजे बजाने लगे। हाहा और हूहू नामके गन्धर्वोके अहङ्कारको हरनेवाले गायक स्वर-गीतिसे सुन्दर और नयी-नयी तरहके राग गाने लगे। नृत्य तथा ताण्डवमें चतुर नटियाँ विचित्र प्रकारको नाज़ो अदासे सबको आश्चर्यमें डालती हुई नाचने लगीं। महाराज भरत उस देखने योग्य नाटकको निर्विघ्न देखते रहे ; क्योंकि उनकेसे समर्थ पुरुषः चाहे जो करें, उसमें कौन रोक-टोक कर सकता है ? इस प्रकार संसार-सुखको भोगते हुए भरतेश्वरने प्रभुके मोक्ष-दिवसके पश्चात् पाँच लाख पूर्व बिता दिये। , एक दिन भरतेश्वर, स्नान कर, बलि कर्म कर, देवदूष्य वस्त्रसे शरीरको साफ़ कर, केशमें पुष्पमाला गूथ, गोशीर्षचंदन का सब अङ्गों में लेपकर, अमूल्य और दिव्यरत्नोंके आभूषण सब अंगोंमें धारण कर, अन्तःपुरकीश्रेष्ठ सुन्दरियोंका समूह साथ लिये.
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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