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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र एक तीसरी चौकोर चिता प्रस्तुत की गयी। फिर मानों पुष्करावर्तमेघ हों, ऐसे उन देवताओंसे इन्द्रने उसी समयक्षीर-समुद्रका जल मँगवाया। उसी जलसे भगवान्के शरीरको नहलाकर उसपर गोशीर्ष-चन्दनका रस लेपन किया गया। तदनन्तर हंसकेसे उज्ज्वल देवदुर्लभ वस्त्रोंसे परमेश्वरके शरीरको ढक कर इन्द्रने उसे दिव्य माणिक्यके आभूषणोंसे ऊपरसे नीचे तक विभूषित किया। अन्यान्य देवताओंने भी इन्द्रकी ही भांति अन्य मुनियों के शरीरोंकी . स्नानादिक क्रियाएं भक्तिके साथ सम्पन्न की। तदनन्तर मानों देवतागण अपने-अपने साथ लेते आये हों, ऐसे तीनों लोकके चुने हुए रत्नोंसे सजी हुई, सहस्र पुरुषोंके वहन करने योग्य तीन शिविकाएँ तैयार हुईं। इन्द्रने प्रभुके चरणोंमें सिर झुका, स्वामीके शरीरको सिरपर उठाकर शिविकामें बैठाया। अन्यान्य देवताओंने मोक्ष-मार्गके पथिकोंके समान इक्ष्वाकु-वंशके मुनियोंके शरीर सिरपर ढो-ढोकर दूसरी शिविकामें ला रखे और तीसरी शिविकामें शेष साधुओंके शरीर रखे गये। प्रभुका शरीर जिस शिविकापर था,उसे इन्द्रने स्वयं उठाया और अन्य मुनियोंकी शिविकाएँ अन्याय देवताओंने उठायीं। उस समय एक ओर अप्सराएँ ताल दे-देकर नाच रही थीं और दूसरी ओर मधुर स्वरसे गीत गा रही थीं। शिविकाके आगे-आगेदेवता धूपदान लिये हुए चल रहे थे। धूपदानसे निकलते हुए धुए को देखकर ऐसा मालूम होता था, मानों वे भी रो रहे हों। कुछ देवता उस शिविका पर फूल फेंक रहे थे और कोई उन्हें शेषा ( निर्माल्यप्रसाद ) समझ कर चुन लेते थे।