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आदिनाथ चरित्र
प्रथम पर्व
कोई आगे-आगे देव-दृष्य वस्त्रोंका तोरण बनाये हुए थे तो कोई यक्षकर्द्दमसे छिड़काव करते चलते थे। कोई गोफणसे फेंके हुए पत्थर की तरह शिविकाके आगे लोट रहे थे और कोई भंग पिये हुए मस्तानेकी तरह पीछेकी तरफ दौड़ रहे थे। कोई तो
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हे नाथ! मुझे शिक्षा दो !” ऐसी प्रार्थना कर रहा था और कोई "अब हमारे धर्म-संशयोंका छेदन कौन करेगा ?” ऐसा कह रहा था । कोई यही कह-कहकर पछता रहा था, कि अब मैं अन्धेकी तरह - होकर कहाँ जाऊँ ? कोई बार-बार धरतीसे यही वर माँगता हुआ मालूम पड़ता था, कि वह फट जाये और वह उसमें समा जाये ।
इस प्रकार बर्त्तते और बाजे बजाते हुए इन्द्र और देवतागण उन शिविकाओंको चिताओंके पास ले आये। वहाँ आकर कृतज्ञता - पूर्ण हृदय से इन्द्रने, पुत्रके समान, प्रभुके शरीरको धीरे-धीरे पूर्व दिशाकी चितापर ला रखा। दूसरे देवताओंने भी भाईकी तरह इक्ष्वाकु कुलके मुनियोंके शरीरको दक्षिण दिशावाली चितामें ला रखा और उचितानुचितका विचार रखनेवाले अन्यान्य देवताओंने भी शेष साधुओंके शरीर पश्चिम दिशावाली चितामें लाकर रख दिये । पीछे अग्निकुमार देवताओंने इन्द्रके आज्ञानुसार उनः चिता
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ओंमें अग्नि प्रकट की और वायुकुमार देवोंने हवा चलाकर चारों ओर धाँ धाँ आग जला दी । देवता ढेर का ढेर कपूर और घड़े भर-भर कर घी तथा मधु चितामें छोड़ने लगे। जब सिवा हड्डोके और सब
* गोफा - अकसर लड़के खेल में रस्सी आदिमें ईंट, या पत्थर बाँधकर फेंकते हैं । उसीको गोफण कहते हैं ।