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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र केवल वहाँ जाकर ही उनको क्यों नहीं अपने अनुकूल बना लेते ? यदि आप अपनेको वीर मानते हुए महाराजका अपमान करेंगे, तो ठीक समझ लीजिये, आप उनके पराक्रमरूपी समुद्रमें सत्तूकी पिण्डीकी तरह हो जायेंगे। चलते-फिरते पर्वतोंकी तरह उनके चौरासी लाख ऐरावत-समान हाथी, जिस समय सामने आयेंगे उस समय कौन ऐसा है, जो उनके आक्रमणको सहन कर सके ? क्या कोई ऐसा माईका लाल है, जो कल्पान्त समुद्रके कल्लोलकी तरह सारी पृथ्वीको प्लावित करनेवाले उनके अश्वों और रथोंको रोक सके ? छियानवे करोड़ ग्रामोंके अधिपति महाराजके छियानवे करोड़ प्यादे सिंहके समान किसको त्रास नहीं देते ? उनका एक सुषेण नामक सेनापति ही हाथमें दण्ड लिये चला आता हो. तो उस यमराजके समान सेनापतिका प्रताप देव, और असुर भी नहीं सहन कर सकते जैसे सूर्य अन्धकारको दूर करता है, वैसेही शत्रुओंको दूर भगा देनेवाले चक्रको धारण करनेवाले भरत चक्रवर्तीके सामने तीनों लोक कोई चीज़ नहीं है। इस लिये हे बाहुबली! यदि आप राज्य और जीवनकी रक्षा चाहते हैं, तो उन महाराजकी सेवा करनी आपके लिये उचित है।'
सुवेगकी ये बातें सुन, अपने बाहुबलसे जगत्को नाश करनेवाले बाहुबलीने दूसरे समुद्रकी तरह गम्भीर स्वरसे कहा,"हे दूत! तू बड़ा ही होशियार है। तेरी ज़बान भी खूब तेज़ है, तभी तो तू मेरे मुंह पर ही इतनी बातें बक गया। बड़े भाई होनेके कारण राजा भरत मेरे पिताके समान हैं। यह उनका