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आदिनाथ-चरित्र ४१२
प्रथम पर्व हृदय भी फट जाये। स्वामोके सम्बन्धमें यदि अपना अल्प छिद्र भी हो, तो उसे ढकना चाहिये, क्योंकि छोटेसे छिद्रके हो सहारे पानी सारे सेतु का नाश कर देता है। यदि अबतक मैं न गया, तो आज क्यों जाऊँ ? ऐसी शङ्का आप न करें और अभी वहाँ चलें क्योंकि उत्तम गुणवाले स्वामी भूलों पर ध्यान नहीं देते। जैसे आकाशमें सूर्यके उदय होने पर कोहरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही आपके वहाँ जाने से चुालखोरोंके मनोरथ नष्ट हो जायेंगे। जैसे पूर्णिमाके दिन सूर्य के साथ चन्द्रमाका संगम होजाता है। वैसेही स्वामीके साथ आपका सङम होतेही आपके तेजकी वृद्धि हो जायेगी। स्वमोके समान आचरण करनेवाले बहुतसे बलवान पुरुष अपना स्वामित्व छोड़कर महाराजकी सेवा कर रहे हैं। जैसे सब देवताओं के द्वारा इन्द्र सेवा करने योग्य है, वैसेही निग्रह और अनुग्रह करनेमें समर्थ चक्रवर्ती सब राजाओ द्वारा सेवन करने योग्य हैं। यदि आप केवल उन्हें चक्रवर्ती जान कर ही उनकी सेवा करेंगे, तो भी उससे आपके अद्वितीय भातृप्रेमका प्रकाश होगा। कदाचित् आप उनको अपना भाई समझ कर वहाँ नहीं जायेंगे, तो.भी यह उचित नहीं होगा, क्योंकि आज्ञा को श्रेष्ठ समझनेवाले राजा ज्ञातिभाव करके भी निग्रह करते हैं। लोहचुम्बकसे खिंचकर चले आने वाले लोहे की तरह महाराज भरतपतिके उत्कृष्ट तेजकै प्रभावसे आकर्षित होकर सभी देव, दानव और मनुष्य उनके पास चले आते हैं। इन्द्रने भी महाराज भरतको अपना आधा आसन देकर मित्र बना लिया है, फिर आप