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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
बीच कोई भाई वहाँ न आया, यह सुन कर उन्होंने अपने भाइयों को बुलानेके लिये दूत भेजे; क्योंकि उत्कण्ठा बड़ी बलवान् होती है। वे लोग बहुत कुछ सोच-विचार कर भरतराजके पास नहीं आये और पिताके पास चले गये। वहाँ उन्होंने व्रत ग्रहण कर लिया 1 अब वे वैरागी हो गये, इस लिये संसारमें उनका कोई अपना पराया नहीं रहा । अतएव उनसे महाराजके भ्रातृवात्सल्य की साध नहीं मिट सकती। ऐसी दशा में यदि आपके मनमें उनके ऊपर बन्धु-स्मेह हो, तो कृपाकर वहाँ चलिये और महाराजको हर्षित कीजिये । आपके बड़े भाई बहुत दिनों बाद दिग्दिगन्त में घूमते हुए घर लौटे हैं, तो भी आप चुपचाप यहाँ पड़े हुए हैं, इससे तो मुझे यही मालूम होता है, कि आपका हृदय वज्रसे भी कठोर है और आप निर्भयसे भी बढ़कर निर्भय हैं; क्यों कि बड़े-बड़े शूर-वीर भी अपने बड़ोंका अदब करते हैं और आप अपने बड़े भाई की अवज्ञा करते हैं । विश्वकी विजय करनेवाले और गुरु की विनय करनेवाले मनुष्यों में कौन प्रशंसा के योग्य हैं, इसका विचार करनेकी सभासदोंको ज़रूरत नहीं है क्योंकि गुरूजनोंकी विनय करने वालोंकी ही प्रशंसा करनी उचित है I आपकी इस अविनीतताको सब कुछ सहनेमें समर्थ महाराज भी सहन कर रहे हैं सही, पर इससे चुगलखोरोंको उनके कान भरनेका पूरा मौक़ा मिलेगा। सम्भव है, आपकी अभक्ति की बातको वोन- मिर्च लगाकर कहनेवाले इन चुगलखोरोंकी वाणीरूपी दहीके छींटे पड़नेसे क्रमश: महाराजका दूधसा
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