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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व
आज्ञावाले सब राजाओ से सेवित आर्य भरतके दिन सुखसे व्य
तीत होते हैं न ?”
। तब
इस प्रकार प्रश्न कर ऋषभात्मज बाहुबली चुप हो रहे आवेग - रहित होकर हाथ जोड़े हुए सुवेगने कहा, सारी "पृथ्वी की कुशल करनेवाले भरतराजकी अपनी कुशल तो स्वतः सिद्ध ही है । भला जिनकी रक्षा करनेवाले आपके बड़े भाई हों, उन नगर, सेनापति, हस्ती और अश्वों की बुराई करनेको तो देव भी समर्थ नहीं है । भला भरतराजासे बढ़कर या उनके मुक़ाबलेका, ऐसा दूसरा कौन है, जो उनके छओं खण्डों पर विजय प्राप्त करनेमें विघ्न डालता ? सब राजा लोग उनकी आज्ञाको मानते हुए उनकी सेवा करते हैं तथापि महाराज भरतपति किसी तरह अपने मनमें हर्षका अनुभव नहीं करते; क्योंकि कोई दरिद्र भले ही हो ; पर यदि उसके अपने कुटुम्बके लोग उसकी सेवा करते हों, तो वह निश्चय ही ऐश्वर्यवान् है । और यदि भारी 'ऐश्वर्यशाली ही हो; किन्तु उसके कुटुम्बी उसकी सेवा न करते हों, तो उसे उस ऐश्वर्य से सुख थोड़े ही होता है ? साठ हज़ार वर्षोंके अन्त में आये हुए आपके बड़े भाई अपने सब छोटे भाइयों के आनेकी राह बड़ी उत्कण्ठाके साथ देख रहे थे । सब सम्बन्धी और मित्रादिक वहाँ आये और उन्होंने महाराजका अभिषेक किया 1 उस समय सब देवताओंके साथ इन्द्र भी आये हुए थे, तथापि अपने छोटे भाइयोंको न देख कर महाराजको हर्ष नहीं हुआ। बारह वर्ष तक महाराजका अभिषेक चलता रहा। इस