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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
कारण, नमकहलाल नौकर स्वामीके कार्य में बाणकी तरह कभी स्खलनको प्राप्त नहीं होते, बहुतेरे गाँवों, नगरों, खानों और कसबोंको पार करता हुआ वह वहाँके लोगोंको क्षणभरके लिये बवंडरसा ही मालूम पड़ता था । स्वामी के कार्य में दण्डकी तरह डटे हुए उसने वृक्ष-समूह, सरोवर और सिन्धु -तट आदि स्थानों में भी विश्राम नहीं किया । इस प्रकार यात्रा करता हुआ वह एक ऐसे भयानक जङ्गल में पहुँचा, जो मृत्युकी एकान्त रतिभूमि मालूम पड़ती थी । वह जङ्गल धनुष बनाकर हाथियोंका शिकार करने वाले और चमरी-मृगों की खालके बख़तर पहननेवाले राक्षसोंके समान भीलों से भरा हुआ था । वह वन यमराजके नाते-गोतों के समान चमरी मृगों, चीतों, बाघों, सिंहों और सरसों आदि क्रूर प्राणियोंसे भरा हुआ था । परस्पर वैर रखनेवाले सर्पो और नेवलोंके बिलों से वह जंगल बड़ा भयङ्कर लगता था । भालुओंके केश धारण करनेके लिये व्यग्र बनी हुई नन्हीं नन्हीं भीलनियाँ उस वन में घूमती-फिरती रहती थीं I परस्पर युद्ध कर जंगली भैंसे वऩके जीर्ण वृक्षों को ताड़ा करते थे; शहद निकालनेवालोंके द्वारा उड़ायी हुई मधुमक्खियोंके मारे उस जंगल में चलना फिरना मुश्किल था । इसी प्रकार आसमान चूमनेवाले ऊँचे ऊँचे वृक्षोंके मारे वहाँ सूर्य भी नहीं दिखलाई देते थे 1 जैसे पुण्यवान् मनुष्य विपत्तियोंको पार कर जाता है, वैसेही खूब तेज़ रथमें बैठा हुआ सुवेग भी उस भयङ्कर जंगलको बड़ी आसानी से पार कर गया। वहाँसे वह बहली-देशमें आ पहुँचा ।