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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व
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उस देशमें रास्ते के किनारे वाले वृक्षोंके नीचे अलङ्कार पहने हुई बटोहियों की स्त्रियाँ निर्भय हो कर बैठी रहती थीं, जिससे वहाँ के सुराज्यका पता चलता था । प्रत्येक गोकुल में वृक्षोंके नीचे बैठे हुए गोपालोंके पुत्र हर्षित - चित्तसे ऋषभदेवके चरित्र गाया करते थे 1 उस देश के सभी गाँव, ऐसे बहुत से फलवाले और घने वृक्षोंसे अलंकृत थे, जो ठीक भद्रशाल-वनमें से लाकर लगाये हुए से मालूम पड़ते थे। वहाँ गाँव-गाँव और घर-घरके गृहस्थ, जो दान देनेमें दीक्षित थे, याचकोंकी खोज में फिरते थे कितने ही गाँवों में ऐसे विशेष समृद्धिशाली यवन गण निवास करते थे, जो राजा भरतके भाससे उत्तर-भारत से आये हुए मालूम पड़ते थे। भरतक्षेत्र के छः खण्डोंसे मानो यह एक निराला हो खण्ड था, इस तरह वहाँके लोग राजा भरतके हुक्म - हाकिम से अनजान थे। इस प्रकार उस बहेलो देशमें जाता हुआ सुवेग, वहाँके सुखी प्रजा-जनोंसे, जो बाहुबली राजाके सिवा और किसी को जानते हो नहीं थे, बारम्बार बातें किया करता था। उसने देखा, कि जंगलों तथा पर्वतों में घूमने-फिरनेवाले मदमत्त शिकारी भी बाहुबलीकी आज्ञासे मानो लंगड़े हो गये हैं । प्रजा-जनोंके अनुराग - पूर्ण वचनों और उनकी बढ़ी चढ़ी हुई समृद्धि देखकर वह बाहुबलकी नीतिको अद्वैत मानने लगा । इस प्रकार राजा भरतके छोटे भाईका उत्कर्ष सुन-सुनकर विस्मित होता हुआ सुवेग अपने स्वामीके दिये हुए संदेसेको बार-बार याद करता हुआ तक्षशिला नगरीके पास आ पहुँचा। नगरीके बाहरी हिस्से