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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व
ऋषभदेवकी भाँति उन्होंने भी संसार में अठारह श्रेणी-प्रश्रेणि
योंका व्यवहार चलाया था। चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख रथ, छियानवे करोड़ अशिक्षितों तथा इतने ही पैदल सिपाहियोंसे वे शोभित थे । बत्तीस हज़ार देशों और बहत्तर हज़ार बड़े-बड़े नगरोंके वे अधिपति थे I निन्नानवे हज़ार द्रोणमुख और अड़तालीस हज़ार किलेबन्द शहरोंके अधिपति थे । आडम्बर - युक्त लक्ष्मीवाले चौबीस हज़ार करबट, चौबीस हज़ार मण्डप और बीस हज़ार खानोंके वे मालिक थे सोलह हज़ार खेड़ों ( ज़िलों ) के वे शासनकर्त्ता थे I चौदह हज़ार संवाद तथा छप्पन द्वीपोंके वे ही प्रभु थे । उनचास छोटेछोटे राज्योंके वे नायक थे । इस प्रकार वे इस समस्त भरतक्षेत्रके शासनकर्त्ता स्वामी थे 1
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इस प्रकार अयोध्या नगरीमें अखण्डित आधिपत्य चलानेवाले महाराजने अभिषेकोत्सव समाप्त हो जानेपर एक दिन अपने सम्बन्धियों का स्मरण किया । तत्काल ही अधिकारी पुरुषोंने साठ हजार वर्षसे महाराजके दर्शनोंके लिये उत्सुक बने हुए सब सम्बन्धियों को उन्हें ला दिखलाया। उनमें सबसे पहले बाहुबलीके साथ जन्मी हुई, गुणोंसे सुन्दर बनी हुई सुन्दरीका नाम पहले बतलाया । वह सुन्दरी गरमीके दिनोंमें पतली धारवाली नदीकी तरह दुबली, पालेकी मारी कमलिनी की तरह कुम्हलायी हुई, हेमन्त ऋतुकी चन्द्रकलाकी तरह नष्ट लावण्यवती थी और शुष्क पत्रोंवाली कदलीकी तरह उसके गाल