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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र जगन्महामोहनिद्रा प्रत्यूषसमयोपमम् । मुनिसुव्रतनाथस्य देशनावचनं स्तुमः ॥२२॥
श्रीमुनिसुव्रत स्वामीका उपदेश, जो जगत्को महान् अज्ञानरूपी निद्रा के नाश करने के लिए प्रातःकाल के समान है, हम उसकी स्तुति करते हैं।
खुलासा-यह जगत् मिथ्या और असार है। श्रायु फटे घड़े के छेद से पानी निकलने की तरह दिन-दिन घटती जाती है, मौत सिर पर मँडराया करती है, लक्ष्मी और स्त्री पुत्रादि सब चपला की समान चञ्चल हैं; फिर भी प्राणियों को होश नहीं होता; क्योंकि वे जगत् की महामोहमयी निद्रा में मग्न हैं । उन मोहनिद्रा में सोने वालों को जगाने के लिए, श्री मुनिसुव्रत स्वामी का उपदेश-वचन प्रातः काल के समान है। जिस तरह प्रातःकाल होने से प्राणी निद्रा त्याग कर उठ बैठते हैं ; उसी तरह सुव्रत स्वामी जी महाराज के उपदेशों को सुन कर, मोहनिद्रा में गर्क रहने वाले चैतन्य लाभ करते और कर्म बन्धन काटने की चेष्टा करते हैं । ग्रन्थकार कहता है, हम उन्हीं मुनि महाराज के उपदेश-वचनों की स्तुति या प्रशंसा करते हैं; क्योंकि वे मोहनिद्रा दूर करने में अव्यर्थ महौषधि के समान हैं।
लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि निर्मलीकार कारणम् । वारिप्वला इव नमः, पान्तु पादनखांशवः ॥२३॥