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आदिनाथ चरित्र
अरनाथस्स: भगवांश्चतुर्थारनभोरविः । चतुर्थपुरुषार्थ श्रीविलासं वितनोतु वः ॥२०॥
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प्रथम पर्व
जो भगवान् श्री अरनाथजी चौथे आरे में उसी तरह शोभायमान थे, जिस तरह आकाश में सूर्य शोभायमान होता है, वह भगवान् तुम्हें मोक्ष दें
* काल-चक्र के दो भाग होते हैं : - ( १ ) उत्सर्पिणी, और (२) अवसर्पिणी, इन दोनों मुख्य भागोंके छह-छह हिस्से होते हैं । इन हिस्सों को ही "अरे" कहते हैं ।
सुरासुरनराधीश मयूरनववारिदम् । कर्मद्रून्मूलन हस्तिमल्लं मल्लिभिष्टुमः ॥२१॥
जिन भगवान् को देखकर सुरपति, असुरपति और नरपति उसी तरह प्रसन्न हुए; जिस तरह नवीन मेघको देखकर मोर प्रसन्न होते हैं और जो भगवान् कर्म-रूपी वृक्षको निर्मूल करनेमें ऐरावत हाथी के समान हैं, उन्हीं मल्लीनाथ भगवान् की हम स्तुति करते हैं ।
* कर्म-बन्धनमें बँधे रहने से प्राणी का जन्म मरण से पीछा नहीं छूटता । जब तक कर्मों की जड़ नाश नहीं होती, तब तक प्राणी को बारम्बार जन्म लेना और मरना पड़ता है। जो कर्म को जड़ से उखाड़ फेकते हैं, वे मोक्ष लाभ करते हैं, उन्हें फिर जनमना और मरना नहीं पड़ता ।