SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ चरित्र २८ε प्रथम पर्व हाथी के कुम्भस्थलों से उसकी नाक ढक गई। परिवार सहित इन्द्र ज्योंही गजपति पर बैठा, त्यों ही सारा सौधर्म लोक हो, इस तरह वह हाथी वहाँ से चला । पालक विमान की तरह अनुकम से अपने शरीर को छोटा करता हुआ वह हाथी क्षणभर में प्रभु द्वारा पवित्र किये हुए बाग़में आ पहुँचा। दूसरे अच्युत प्रभृति इन्द्र भी 'मैं पहले पहुँच, 'मैं पहले पहुँचूँ' इस तरह जल्दी जल्दी देवताओं को साथ लेकर वहाँ आन पहुँचे । समवसरण की रचना | से उस समय वायुकुमार देवताने मान को त्याग कर, समवरुके लिये, आठ मील पृथ्वी साफ की । मेघ कुमार के देवताओं ने सुगन्धित जलसे ज़मीन पर छिड़काव किया । इससे मानो पृथ्वी, यह समझकर कि प्रभु स्वयं पधारेंगे, सुगन्धि पूर्ण आँसुओं धूप और अर्थ को उड़ाती हुई सी मालूम होती थी । व्यन्तर देवताओंने भक्ति पूर्वक अपनी आत्माके समान ऊँची ऊँची किरण वाले सोने, मानिक, और रत्नों के पत्थर ज़मीन पर विछा दिये । मानों पृथ्वी से ही निकले हों ऐसे पचरंगे सुगन्धित फूल वहाँ विखेर दिये । चारों दिशाओं में मानों उनकी आभूषणाभूत कष्ठियाँ हों इस तरह रत्न, माणक और सोने के तोरण बाँधे । वहाँ पर लगाई हुई रत्नमय पुतलियों की देहके प्रतिविम्ब एक दूसरे पर पड़ते थे । उनके देखने से ऐसा मालूम होता था, गोया सखियाँ परस्पर आलिङ्गन कर रही हों । चिकनी चिकनी इन्द्रनीलमणि
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy