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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व
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से आये हुए बन्धु की तरह, उन्हें चारों ओर से घेर लिया, और कहने लगे:- हे प्रभो ! आप कृपाकरके हमारे घर पर चलिये; क्योंकि वसन्त ऋतु के समान आप बहुत दिनों बाद दिखाई दिये हैं । किसीने कहा - "हे स्वामिन्! स्नान करने के लिए उत्तम जल वस्त्र और पीठिका आदि मौजूद हैं। इसलिये आप स्नान कीजिये और प्रसन्न हूजिये" किसीने कहा- “मेरे यहाँ उत्तम चन्दन, कपूर, कस्तूरी और यक्षकदर्भ तैयार हैं, उन्हें काम में लाकर मुझे कृतार्थ कीजिये ।” किसीने कहा- “हे जगत् रत्न ! कृपा कर हमारे रतमय अलङ्कारों को धारण करके शरीरको अलंकृत कीजिये ।" किसीने कहा - " हे स्वामिन्! मेरे घर पधार कर अपने शरीर में आने वाले रेशमी कपड़े पहनकर उन्हें पवित्र कीजिये ।” किसीने कहा- "हे देव ! देवाङ्गना समान मेरी स्त्री को आप अपनी सेवामें स्वीकार कीजिये, आपके समागम से हम धन्य है ।" किसीने कहा- "हे राजकुमार ! खेलके मिससे भी आप पैदल क्यों चलते हैं ? मेरे पर्वत जैसे हाथी पर बैठिये ।" किसीने कहा – “सूर्यके घोड़ोंके समान मेरे घोड़ों को ग्रहण कीजिये । आतिथ्य स्वीकार न करके, हमें नालायक - अयोग्य क्यों बनाते हैं ?” किसीने कहा- “मेरा जातिवन्त घोड़ोंसे जुता हुआ रथ स्वीकार किजिये | आप मालिक होकर अगर पैदल चलते हैं, तब इस रथका रखना फिजूल हैं । इसकी क्या जरूरत है । " किसीने कहा – “हे प्रभो ! इस पके हुए आमके फलको आप ग्रहण कीजिये । स्नेही जनोंका अपमान करना अनुचित है"
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