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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
आहार न लेता हुआ अभिग्रह करके रहूँगा, तो मेरा शरीर तो ठहरा रहेगा; परन्तु जिस तरह ये चार हज़ार मुनि भोजन न मिलने से पीड़ित होकर भग्न होगये हैं; उसी तरह और मुनि भी भग्न होंगे। ऐसा विचार करके, प्रभु भिक्षा के लिए, सब नगरों में मण्डन रूप, गजपुर नामक नगर में आये। उस नगर में वाहुबलिके पुत्र सोमप्रभ राजाके श्रेयांस नामक कुमारने उस समय स्वप्न में देखा, कि मैंने चारों ओर से श्याम रंग हुए सुबर्णगिरी -मेरु पर्वत को, दूधके घड़ेसे अभिषेक कर, उज्ज्वल किया | सुबुद्धि नामक सेठ ने ऐसा स्वप्न देखा कि सूर्य से गिये हुए हज़ार किरण श्रेयांसकुमारने फिर सूरज में लगा दिये, उनसे सूर्य अतीव प्रकाशमान हो उठा। सोमयज्ञा राजाने स्वाप्न में देखा कि, अनेक शत्रुओंसे चारों ओर से घिरे हुए किसी राजाने अपने पुत्र श्रेयांस की सहायता से विजय लक्ष्मी प्राप्त की। तीनों शक्सों ने अपने अपने स्वाप्नों की बात आपस में कही, पर उनका फल या ताबीर न जान सकने के कारण अपनेही घरको चले गये । मानो उस स्वप्नका निर्णय प्रकट करने का निश्चयही कर लिया हो, इस तरह प्रभु ने उसी दिन भिक्षा के लिए हस्तिनापुर में प्रवेश किया । एक संवत्सर तक निराहार रहने पर भी ऋषभ की लीला से चले आते हुए प्रभु हर्षके साथ लोगों की दृष्टितले आये 1
श्रेयांस को जाति स्मरण ।
प्रभु को देखतेही पुरवासी लोगोंने संभ्रम से दौड़कर, विदेश