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प्रथम पव
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आदिनाथ चरित्र
तरह दीनके वालक की भाँति यह अनुवर बड़ों पर कैसा मन चला रहा है ! जिस तरह मेघ को चातक और पैसेको याचक चाहता है, उसी तरह यह अनुवर सुपारी पर कैसा मन चला रहा है ! जिस तरह गाय का बच्चा घास खानेको मन चलाता है; उसी तरह यह अनुवर पान खानेको कैसा नादीदा सा हो रहा है ! जिस तरह मक्खन की गोली खानेको बिल्ली जीभ लपलपाती है; उसी तरह यह अनुवर वर्ण पर कैसी जीभ लपलपा रहा है ? पोखरी की कीचड़ को भैंसा जिस तरह चाहता है, उसी तरह इत्र प्रभृति सुगन्धित पदार्थों पर इस अनुवर का मन चल रहा है । जिस तरह पागल आदमी निर्माल्यको चाहता है, उसी तरह यह अनुवर फूलमाला को कैसे चंचल नेत्रोंसे देख रहा है ? इस तरह के कौतुक धवल - गीत - गालियों को ऊँचे कान और मुँह करके सुनने वाले देवता चित्र-लिखे से हो गये 1 'लोक में यह व्यवहार बतलाना उचित है, ऐसा निश्चय करके, विवाह में नियत किये हुए मध्यस्थ मनुष्य की तरह, प्रभु उन की उपेक्षा करते थे जिस तरह बड़ी नावके पोछे दो छोटी नावें बांध देते हैं, उसी तरह जगत्पति के पल्ले के साथ दोनों बधुओं के पल्ले इन्द्रने बाँध दिये । आभियोगिक देवता की तरह इन्द्र स्वयं भक्ति से प्रभुको अपनी कमर पर रख कर वेदी - गृहमें ले जाने लगा । तब उसी समय दोनों इन्द्राणियाँ आकर, तत्काल, दोनों कन्याओं को हथलेवा न छूटे इस तरह कमर पर रख कर ले चलीं । तीन लोक के शिरोरत्न रूप उन वधू वरने पूरब के द्वार से वेदी वाले स्थान में
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