________________
प्रथम पर्व
२०५ आदिनाथ चरित्र पुष्ट और ऊँचे थे। उनकी दोनों बग़लोंमें रोएँ अत्यन्त न थे और उनमें बदबू, पसीना और मैल नहीं था। उनकी दोनों भुजाएं पुष्ट, कर रूपी फणके छत्र वाली और घुटनों तक लम्बी थीं और चञ्चल लक्ष्मीको नियममें रखनेके लिये नाग-पाश-जैसी जान पड़ती थीं। उनके दोनों हाथोंके तलवे नवीन आमके पत्तों-जैसे लाल, निष्कर्म होने पर भी कठोर, पसीना रहित, बिना छेवाले
और ज़रा-ज़रा गर्म थे। पाँवोंकी तरह उनके हाथों में भी दण्ड, चक्र, धनुष-कमान, मछली, श्रीवत्स, वज्र, अङ्कुश, ध्वजा-पताका, कमल, चँवर, छाता, शंख, घड़ा, समुद्र, मन्दिर, मगर, बैल सिंह, घोड़ा, रथ,स्वस्तिक, दिग्गज-दिशाओंके हाथी, महल,तोरण,और द्वीप या टापू प्रभृतिके चिह्न थे। उनके अंगूठे और उँगलियाँ लाल हाथोमें से पैदा होनेके कारण लाल और सरल थे तथा प्रान्त भागमें, माणिकके फूल वाले कल्पवृक्षके अंकुर-जैसे मालूम होते थे । अँगूठेके पोरवोंमें, यश रूपी उत्तम घोड़ेको पुष्ट करने वाले,जौ के चिह्न स्पष्टरूपसे शोभा दे रहे थे। उँगलियोंके ऊपरके भागमें दक्षिणावर्त्तके चिह्न थे। वे सब सम्पत्तिके कहने वाले दक्षिणावर्त शंखपने करकी धारण करते थे। उनके करकमल के मूल भागमें तीन रेखायें सुशोभितीथीं। वे मानो कष्टसे तीनों लोकोंका उद्धार करनेके लिये ही बनी है, ऐसी मालूम होती थीं। उनका कंठ गोल किसी कदर लम्बा, तीन रेखाओं से पवित्र गम्भीर ध्वनिवाला और शंखकी बराबरी करने वाला था; यानी उनकी गर्दन गोल और कुछ लम्बी थी। उसपर तीन रेखाओंके निशान