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आदिनाथ- चरित्र
प्रथम- पर्व
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सागरचन्द्र की सरलता
सागरचन्द्र ने कहा- 'स्त्रियोंसे ऐसी ही आशा है, उनसे. ऐसे ही काम हो सकते हैं; क्योंकि खारी ज़मीन के निवाण के जलमें खारापन ही होता है। मित्र ! अब दुखी मत होओ, अच्छे काममें लगे रहो और उसकी बातों को याद मत करो । भाई ! वास्तव में वह जैसी हो, भलेही वैसीही रहे; परन्तु उसके कारण से अपन दोनों मित्रोंके मनोंमें मलीनता न हो - अपने दिलो में फ़र्क न आवे ।' सरल - प्रकृति सागरचन्द्रकी ऐसी अनुनयविनय से वह अधम अशोकदत्त प्रसन्न हुआ, क्योंकि मायावी लोग अपराध करके भी अपनी आत्मा की प्रशंसा कराते हैं।
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सागरचन्द्रको संसारसे विरक्ति ।
देहत्याग और युगलिया जन्म |
उस दिनसे सागरचन्द्र प्रियदर्शनाको प्यार करना छोड़कर, निःस्नेह होकर, रोग वाली अँगुलीकी तरह, उसको उद्वेगके साथ धारण करने लगा; फिरभी उसके साथ पहले की तरह ही बर्ताव करता रहा। क्योंकि, अपने हाथोंसे लगाई और पाली-पोषी हुई लता, अगर बाँक भी हो जाय, तोभी उसे जड़से नहीं उखाड़ते । प्रियदर्शनाने यह सोचकर कि मेरी वजहसे इन दोनों मित्रोंका वियोग न हो जाय, अशोकदत्त-सम्बन्धी वृत्तान्त अपने पति से न कहा | सागरचन्द्र संसारको जेलखाना समझकर अपनी सारी धन-दौलतको दीन और अनाथोंको दान करके कृतार्थ करने लगा ।