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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
समय आने पर, प्रियदर्शना, सागरचन्द्र और अशोकदत्त - इन तीनोंने अपनी-अपनी उम्र पूरी करके देह त्याग दी, अर्थात् पञ्चत्वको प्राप्त हुए। उनमें सागरचन्द्र और प्रियदर्शना इस जम्बूद्वीप में, भरतक्षेत्र के दक्षिण खण्डमें, गंगा और सिन्धु नदीके बीच के प्रदेशमें, इस अवसर्पिणी के तीसरे आरेमें, पल्योपमका आठवाँ भाग शेष रहने पर, युगलिया रूपमें उत्पन्न हुए ।
छः आरॉका स्वरूप ।
पाँच भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्र में, कालकी व्यवस्था करनेके कारण रूप बारह आरोंका कालचक्र गिना जाता है । वह कालचक्र - (१) अवसर्पिणी, और (२) उत्सर्पिणी, इन भेदोंसे दो प्रकारका होता है । उसमें अवसर्पिणी कालके एकान्त सुषमा आदि छ: आरे हैं । एकान्त सुषमा नामक पहला आरा चार कोटा कोटी सागरोपमका, दूसरा सुषमा नामक आरा तीन कोटा कोटी सागरोपमका, तीसरा सुषम- दुःखमा नामक आरा दो कोटा कोटी सागरोपमका, चौथा दुःखम- सुषमा नामक आरा बयालीस हज़ार वर्ष कम एक कोटा कोटी सागरोपमका, पाँचवाँ 'दुःखमा नामक आरा इक्कीस हज़ार वर्षका और पिछला या छठा एकान्त दुःखमा नाम भी इतना ही यानी इक्कीस हज़ार वर्षका होता है । इस अवसर्पिणीके जिस तरह छः आरे कहे हैं; उसी तरह क्रमसे विपरीत आरे उत्सर्पिणी कालकेभी जानने चाहिएँ । उत्सर्पिणा और अवसर्पिणी कालकी सम्पूर्ण संख्या बीस कोटा कोटी सागरोपमकी होती है । इसीको “काल चक्र" कहते हैं ।