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प्रिय महाशयो ? ____ आज आप लोगोकी सेवामें यह हिन्दी-जैन साहित्य-उत्कर्ष-ग्रन्थमालाका पहिला पुण्य रखा जाता है।
और इस ग्रन्थके छपानेमें श्रीमती विदुषी स्वर्गस्था साध्वजी दर्शनश्रीजी की 'स्मरणार्थे सुरत निवासी एक सजन श्रावक (गुप्तदानी ) के तरफसे सहायता मीलि है । सहर्ष स्विकारी जाती है । श्रीमतीजीका इसमें फोटु देनेका था, परन्तु फोटु नही होने से दे सके नहीं।
ओर भी कइ महानुभावोंने सहायता प्रदानकी है अतः उनको भी हम सहर्ष धन्यवाह देते हैं । और
साथमें यह निवेदन हैकि आप निरन्तर हमारी ग्रन्थ' मालामें सहायता देके हमारे कार्यको आगे बढ़ायगें। .
आपका, श्री-जैन-स्वयं सेवक मण्डल नं० ९ मोरसलीकी गली-इंदोर (मालवा )
(मध्यभारत)