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चिकित्सा महोदधि न्यायतत्वतरङ्ग द्विजमुख चपेटिका, बलाबलसूत्रवृति अयोग व्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अन्योगव्यच्छेदद्वात्रिंशिका प्रभति अनेक ग्रन्थ लिखे है । और आपने कुल साडेतीन करोड श्लोंकोंकी रचना की है । शायद ही ऐसा कोइ हुआ होकी आपकी तुलनाको पहुंचा हो मुझे आचार्य श्रीके विषयमे बहुत धुछ उल्लेख देने काथा, परन्तु समयाभावके कारणसे नही दियाहै, अतः इतनाही काकी है।
आज आपमहानुभावोंको यह त्रिषष्टी शलाका पुरुष चरित्रका पहिलापर्वश्री आदिनाथ चरित्र हस्तगत होते पुरा ख्यालहोगाकि आचार्य श्रीकी विद्वतामें कितनी चमकृत शक्ति. रही हुइ हैं।
अन्तमें मुझे यहभी कहना उचितहै कि ग्रन्थके अनुवादकार्यमें श्रीयुत साहित्यालंकार पं. श्रीधरशास्त्रीजी अध्यापक संस्कृत महाविद्यालय इंदोर मालवा तथा पं. जिनदास गांधीजीने जो सहायता दी है अत: वे धन्यवादके पात्र है।
__ और भी पाठकोको इतना कहना उचित है कि वे इस पुस्तकमें जो कुछ त्रुटी देखे वह हमें सूचित करे । जिसे द्वितीय संस्करणे ख्याल रखा जाय ।
ले० लालबाग-जैन उपाश्रय ) आचार्य श्रीजयसूरीश्वरचरणोपासक. बम्बई वीर सं. २४५० ४ मार्गशीर्ष पूर्णिमा )
प्रतापमुनि.
श्रीकृष्ण प्रेस, अनंतवाडी, मुंबई नं, २.