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आदिनाथ-चरित्र १२२
प्रथम पर्व सकते थे; यानी वे अपने तीन डगों में इतना लम्बा सफर तय कर सकते थे। यदि वे ऊँचे जाना चाहते, तो एक डग में मेरु पर्वत-स्थित पांडुक उद्यान में जा सकते थे और वहाँ से वापस लौटते समय एक डग में नन्दन वन में और दूसरे डग में उत्पात भूमि की तरफ आ सकते थे। विद्याचारण लब्धि से वे एक फलाँग में मानुषोत्तर पर्वत पर और दूसरी फलाँग में नन्दीश्वर द्वीप में जा सकते थे और वापस लौटते समय एक फलाँग में पूर्व उत्पात भूमि में आ सकते थे। उर्ध्वगति में, जंघाचरण से विपरीत गमनागमन करने में शक्तिमान थे। उनको आसीविष लब्धि भी प्राप्त हो गई थी, इसके सिवा निग्रह अनुग्रह कर सकने वाली और भी बहुत सी लब्धियाँ उन्हें मिल गई थीं; परन्तु इन लब्धियों से वे काम न लेते थे, उन्हें उपयोग मेंन लाते थे; क्योंकि मुमुक्षु पुरुषों को मिली हुई चीज़ में भी आकांक्षा नहीं होती।
बीस स्थानकों का स्वरूप । अब वज्रनाभ स्वामी ने, वीस स्थानकों की आराधना से, तीर्थङ्कर नाम गोत्रकर्म दृढ़ता से उपार्जन किया। उन बीस स्थानकों में पहलास्थानक- अर्हन्त और अरहन्तों की प्रतिमा-पूजा से, उनके अवर्णवाद का निषेध करने से और अद्भुत अर्थ वाली उनकी स्तुति करने से आराधना होती है (अरिहन्त पद) । सिद्धिस्थान में रहने वाले सिद्धों की भक्ति के लिए जागरण उत्सव करने से तथा यथार्थ रूप से सिद्धत्व का कीर्तन करने से दूसरे