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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र अन्त या मध्य का एक पद सुननेले तत्काल सारे ग्रन्थ का बोध होजाय, ऐसी पदानुसारिणी लब्धि उनको प्राप्त होगई थी। एक वस्तु का उद्धार करके, 'अन्तमुहूर्त में समस्त श्रुत समुद्र में अवगाहन करने की सामर्थ्य से वे मनोबली लब्धि वाले हुए थे। एक मुहूर्त में मूलाक्षर गिनने की लीला से सब शास्त्र को घोष डालते थे, इसलिये वे वाग्बली भी होगये थे। चिरकालतक समाधि या कायोत्सर्ग में स्थिर रहते थे, किन्तु उन्हें श्रम-थकान और ग्लानि नहीं होती थी ; इससे वे कायबली भी हुए थे। उनके पात्र के कुत्सित अन्नमें भी अमृत, क्षीर, मधु और घीका रस आनेसे तथा दुःख से पीड़ित मनुष्यों को उन की वाणी अमृत, क्षीर, मधु और घृत के समान शान्तिदायिनी होती थी, इससे वे अमृत क्षीर मध्वाज्याश्रवि लब्धिवाले हुए थे। उन के पात्र में रखा हुआ थोड़ा सा अन भी दान करने से अक्षय होजाता था, इसलिए उन को अक्षीण महानसी लब्धि प्राप्त हो गयी थी। तीर्थङ्कर की सभा की तरह थोड़ी सी जगह में भी वे असंख्य प्राणियों को बिठा सकते थे। इसलिये वे अक्षीण महालय लब्धिवाले थे और एक इन्द्रिय से दूसरी इन्द्रिय का विषय भी प्राप्त कर सकते थे, इसलिये वे संभिन्न श्रोत लब्धिवाले थे। उन को जंघाचरण लब्धि प्राप्त हो गई थी ; जिससे वे एक कदम में रुचकद्वीप पहुँच सकते थे और वहाँ से वापस लौटते समय पहले कदम में नन्दीश्वर द्वीप में आते और दूसरे कदम में जहाँ से चले थे वहाँ आ