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________________ प्रथम पर्व ८७ आदिनाथ-चरित्र के बवंडर या बगूले में भ्रमता है। किसी की भी बिना दी हुई चीज़ न लेनी चाहिये अथवा किसी भी चीज़ की चोरी न करनी चाहिये ; क्योंकि कौंच की फली के छूने के समान अदत्त-बिना दिया हुआ पदार्थ लेने से किसी हालत में भी सुख नहीं मिलता। अब्रह्मचर्य को त्यागना चाहिये। क्योंकि अब्रह्मचर्य रंक की तरह गला पकड़कर मनुष्य को नरकमें ले जाता है। परिग्रह इकट्ठा न करना चाहिये, क्योंकि बहुत बोझ से वैल जिस तरहकीचड़ में फंस जाता हैं, उसी तरह मनुष्य परिग्रह के वश में पड़कर दुःख में डूब जाता है। जो लोग हिंसा प्रभृति पाँच अव्रतका देशसे भी त्याग करते हैं, वे उत्तरोत्तर कल्याण सम्पत्ति के पात्र होते हैं।' निर्नामिका का पुनर्जन्म। ललितांग और स्वयंप्रभा का पुनर्मिलन । 'केवली भगवान् के मुंहसे ऐसी बातें सुनकर निर्नामिका को वैराग्य उत्पन्न हो गया और लोहे के गोले की तरह उस की कर्मग्रन्थि भिद गयी। उस ने उस मुनीश्वर के पास से अच्छी तरह सम्यक्त्व ग्रहण किया और परलोक-रूपी मार्ग में पाथेयतुल्य अहिंसा आदि पाँच अणुवृत धारण किये। इस के बाद मुनि महाराज को प्रणाम कर, मैं कृतार्थ हुई,-ऐसा मानती हुई, वह निर्नापिका भारी उठाकर अपने घर गई। उस दिन से, वह सुबुद्धिमती बाला अपने नाम की तरह युगंधर मुनि की वाणी को
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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