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भारहमासे भी है। उदाहरणार्थ रेवंतगिरिराम, समरारास, आणंदो, तथा गीतस्तोत्र और स्वबन आदि।
इन रचनाओं में भी वर्णन की कई परंपराए (cycles ) है जो इनमें अद्यावधि प्राण फूंकती रहती है। क्या की इन लेखन परंपराओं ( cycles , की स्थितियों को समझाने के लिए हमें उक्त रचनाओं में से कुछ का अनुशीलन करना पड़ेगा। इन परंपराओं की सबो महत्वपूर्ण बात यही है कि क्या कारण है कि एक ही व्यक्ति पर थाम (cyclic order ) में अनेक काव्य लिने गए, जिनके नाम, वस्तुसंयोजन आदि एक दम भिन्न रक्ो गए है, परन्तु जिनका क्या क्रम वही पुरासन है। उदाहरणार्थ नेमिनाथ चतुष्पदिक, नैमिनाथ फाग नेमिनाथ राब, नैमिरास, नैभिवरित,स्थतिमा रास, स्थलिभद्र फाग स्थलिपनवरित बन्द स्वामी काग, स्वामी का रार, चंबूस्वामी अरित था बम्बस्वामी को विवाहलो।
एक ही जीवन चरित को नाक बनाकर विभिन्न नामों से उसी क्या का नामकरम कवि ने अलग अलग क्यों किना है, साथ ही जब इन ऋतियों में कथा परम्परा समान है जब कवियों ने इनका नामकरण विभिन्न विभिन्न क्यों रखा। प्रान बाबा की सगा। पर मारा पाने पर र स्पष्ट हो गये है। वरना कवियों ने इस माश्यों को साबल्य रस्सा उसने वर्मन क्रम में परंपरायों का बापम बाकर कोई काम नहीं सका है। वर्षन परंपरानो tereles ) का सर विभिन्न मापावाली कुछ निम्ना किस कवियों की तुलना सम्भव स्वस्ट हो -
और का:
रास और जु क रममा उपाय होती है। एक ही परित मायक पर कारमा राज मान मिली है या उसी वरित मा पर लिखी
रमाए । महानि रचनाओं में क्या सूत्र को बही होता। प mtarन विभिन्न नामों से लिखी जाने वाली
सोनाकरिम व्यक्ति या उसका अपना मनोवांछित परिवर्तन