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इसी प्रकार १२३७ ई० में बहन को भी मेवाड़ के महारावल समरसिंह से हार बानी पड़ी। मेवाढ से गुजरात के रास्ते मिले हुए थे। अतः मेवा के मेवातियों ने प्राण प्रण से तुर्कों को इधर बढ़ने से रोका। मेवाती लोग पुराने वर्कों के वंशज थे। ये बड़े लड़ाके और दुर्दमनी थे। अतः रणथंभौर और ग्वालियर की रक्षा मेवाड़ के इन्हीं वीरों के कारण हो सकी । १२९०६० मैं ख़िलजी वंश के कारण राजनीति में विविध परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। अलाउदीन खिलजी को मेवाड़ के रावल समरसिंह से हार मानी पड़ी, पर उसने फिर मेवाड़ के दक्षिण की परिक्रमा कर छन् १२९८ में गुजरात और पाटन पर अहमदाबाद होकर धावा किया। अब राजस्थान भी इन आक्रमणकारियों द्वारा तीनों तरफ से घिर गया। बिलजी बलाउ दूदीन से १३०१ में रमौर, १३०२ में चित्तौड़ को घेरा। रत्नसिंह की सुन्दरी रानी पद्मावती ने सैकड़ों वीरांगनाओं के साथ जौहर की धधकती लपटों में प्रवेश किया। खिलजी ने इस प्रकार १३१९ ई० तक मारवाड़ के जालौन, नाकौल, सिवाना, पीeere, बाचौर (सत्यपुर) तथा जैसलमेर जीता | आदिकालीन हिन्दी जैन की धना रचित कृति सत्यपुरीय महावीर उत्साह में अलाउद्दीन के बाचौर या वत्यपुर पर आक्रमण की क्या स्पष्ट होती है। इस प्रकार व तावृदी में राजस्थानमें भी हुई आधिपत्य पूर्वतः BT गया। सन् १३२० ई० में तुगलक वंत्र बाया। महाराणा हम्मीर ने मलकों को चुनौती देकर चित्तौड़ पुन: के दिया। कुछ अदूरदर्शी कार्यों से मेवाड़ के
महाराणा काढा ने काम उठाया पर व्यू १३९८ के तैमूर के हमले ने
१- देखिए गुजरात मी सांस्कृतिक इतिहास ० १२१-१३० द्वारा श्री रत्नमणि राव भीमराव जोटे प्रकाशक गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी, महमदाबाद।
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२- देवि प्रस्तुत का आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य (३) स्व काव्य परम्पराये नामक अध्याय