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तो मिलता ही है। इन प्राचीन ग्रन्थों में गइय जिन जिन रूपों में जैन जैसा भी सुरक्षित मिलता है उनके उद्धरण गद्य रचनाओं के इसी अध्याय में परम्परा के रूप में दिए गए हैं। इन ग्रन्थों में सबसे प्रमुख ग्रन्थ कुवलयमाला के कथानक, प्रबन्धचिन्तामणि के भाषा कथानक तथा उक्ति व्यक्ति प्रकरण में उद्धृत ग है। अपभ्रंश पूर्ण गद्य काव्य की अलग से कोई रचना अभी तक उपलब्ध नहीं होती पर भंडारों की शोध होने पर इस प्रकार की गद्दय काव्यात्मक कई कृतियों के मिलने की आशा है क्योंकि यह कहा एकदम बहुत कठिन होगा कि प जैसी भाषा के पास जिसने उत्कृष्ट महा काव्य साहित्य को दिए है, गद्दय काव्य का अभाव है।
अपभ्रंश के उत्तर काल में गद्य काव्य की रचनाएं मिलने लगती है। प्राचीन राजस्थानी तथा जूनी गुजराती में गद्यकाव्य के सुन्दर नमूने उपलब्ध हुए है। वीं शताब्दी का बम्बई के प्रिन्स आफ वेल्स संग्रहालय में स्थित एक शिला लेख में राउल के नशिल वर्णन में कवि ने उत् मौलिक स्थित उपमानों से युक्त सुन्दर गद्यकाव्य लिखा है । अयावधि आदि कालीन हिन्दी गद्य काव्य मूलक रचनाओं में सबसे अधिक प्राचीन वही रचना है जिसका रचना काल मा लेब काल १०वीं तादी का है। इस जिला पर उतर लौकिक काव्यों के भाग में प्रकाश डाला गया है। यह रचना गद्यकाव्य की परम्परा का प्रारम्भिकरने बाली सबसे प्राचीन कृति है। साथ उसी अध्याय में मैथिली की रचना व रत्नाकर पर भी प्रकाश डाला गया है। इन अलैन रचनाओं द्वारा बहुत सम्भव है गय काव्य की परम्पराकै उदभव और विकास को धमकाने में सहायता मिलेगी। हिन्दी की प्रादेशिक नावाजों, ठीक प्रवति परम्पराओं और मौखिक या अलिसि
रचनाएं अभी छिपी पड़ी होगी जो सम्भवतः ति मालवी की, अवधी, ब्रज मगही, बोलियों में भी सम्भवतः गम काव्य
त्व में इस प्रकार की अनेक धीरे धीरे प्रकार में मीही
की और भी रचनाएं प्राप्त हो। पर इस समय तक हिन्दी की इन प्रादेशिक प्राचीन राजस्थानी या मी गुजराती की कृतियों में पर्याप्त