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व चरित्र को सबल करने के तत्व तथा रचयिता के भावों को सरल भाषा में प्रस्तुत
करने की असाधारण क्षमता है। कृति की भाषा हुछ नहीं, पकदम सरल है। क्लिष्टता से यह कृति कोसों दूर हैं।
गम के कुछ उदाहरण देखिए:
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बसंतपुर नाम नमक। जिनदार मानि श्रावकुते
महेसरदत्स
नामि मित्र । विपदास बागार मानिनी विदयालय बलि नंदी स्वरि दुवीषि arred चैत्य वादिया गयठ
अनामी कि काही किंवा नाहीदेव पावती (प्राकृत)
भानु किं करिष्यति
(संस्कृत)
कियों कfres frसर जा विसर - इत्यादि
आति स महेसरदत्ति भणित मित्र तावर देखि अपूर्व सुगन्ध गंधाइ ।
तिमि नंदीश्वर यात्रा वृतान्तु कविउ तिर महेसरवत्तु ममइ मूरहई पुषि nara गामिनी विद्या आणि अति निर्बंधि कथइ हूं जिन दाखि
महेसरवत्त र विद्या दीधी।
बिनवर इसी परिभावना मावा । तदा तिथि नगरी केवली
,
बा राजादि लोके बादी
-भगव किं। लोक कह-भगवत अभिन
sing a केवली कही विनय
पारा वित्तु न भाराि
उक्त उद्धरणों द्वारा कृति की लोकप्रियता का अनुमान का ही लगाया
वास्ता है।राजस्थानी
के कंकाल में इस कृति
के सरल प्रयोग और मयू बाड़मेर मा तथा सरस की देवर व्यारा हैमहावश्यक वातावनी में वैनियों में
निलेवन किया है। देवक, (सम भावग्रहण) - गुरुवंदन,
३
वीर्थकरों की स्तुति) ४- प्रतिक्रमण (पापों का
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等物
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४
等地
ग्रन्थ वितीय प्रकरण २०१३-१४।
कृषि को कमि ने रूपरंग वार्षिक अंगों कर्मों का