SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 943
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योतक है। रचनाकार संग्रामसिंह श्रीमालकुल के जैन थे। तथा संस्कृत के प्रकान्ड पंडित थे। अस्तु संस्कृत के व्याकरण को जन भाका में बहुत ही सरल बनाने के लिए ही लेखक नेयह रचना लिखी है। कृति की व्याख्या पूर्णतया तुलनात्मक ढंग से की मई है। पहले संस्कृत शब्द दिए गए है तथा पश्चात् तत्कालीन भाषा के अदम्म। जन भाषा वा तत्कालीन राजस्थानी के शब्दों के इस तुलनात्मक विवेचन से यह नाह होता है कि लेखक व्य यह रहा होगाकि इनकी स्त में अभिव्यक्ति किस प्रकार संभव हो सकती है, इनमें कौन से स्प व्यवहारिक है और कौन से अव्यवहारिक भाषा के प्राचीन स कौन से है तथा प्रचलित रूप क्या है आदि प्रवृत्तियों को इस कृति से समझा जा सकता है। संग्राम सिंह की बालविा की केली अनुवाद प्रधान है।रचना की समाप्ति संस्कृत के कई भब्दों संस्कृत की क्रियाओं विशेषणों विशेष्यों व अन्य अनेक शब्दों के रूप तत्कालीन भाषा स्मों के साथ। संग्रडीर है। रचना संस्कृत की व्याकरण की एक सरल व्याख्या है।वास्तव में या कृषि विद्यार्थियों के लिए किसी गई है अत: व्याख्या में बहुत अधिक सरलता और सरसता विद्यमान है बुहल उदाहरण बटव्य है:(१) लिंग पक्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुसंकलिंगु मल लिग, भली स्त्रिीलिंग भल नपुंसकर्षित (स्यादिमा) () सि एक वरनु और द्विवचन बस बावचन (संशा प्रक्रनमा) (Byaaर केता , सपान मेवा ", सवर्ष ... स्व ५, दी ५. मानीया स्थारा १, बार, व्यंजन, बर्ष ५, कपटप, प्रयोग त कारण बिग्रिी को ज्या संस्कृत की विभिन्न विभक्तियां दिया मो. काही आदिमाया माँ का बिखत विवेचन निम्नास्ति उदाहरणों इवारा सटा - --- - ----......
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy