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सारे अन्ध को अगिन परम कर दिया। प्रध अग्नि उरण हो जाने के बाद किस प्रकार वह पुनः लिखा गया, इसी सरस कहानी को प्रचालित जन भाग में कषि में प्रस्तुत किया है।
अन्य वाली इस घटना के बाद कवि धनपाल रागभोज में उठकर सत्यपुर (सानोर) चले गए और वहीं उन्होंने महमूद गजनवी के महावीर की मूर्ति पर आक्रमण करने पर कधि ने परम उत्साह से -सत्यधरीय महावीर उत्साह (.
लिखा। कहते है कि मोच का वरवार नपाल के बिना दरिद्र हो गया। पुनः धनपाल को शास्त्रार्थ के लिए बुलाया गया। बहुत संभव है कि नपा ने पुनः वहीं से लौटकर ही अपने ग्रन्थ नष्ट करने के मनस्ताप को गाय के रूप में आगी दी हो। रक्ना का समय अनुमानतः देवी १२वीं बवाब्दी का संकिाल रहा होगा।वीं एवीं शताब्दी की यह रचना तत्कालीन गदन की सम्पन्नता का अन्दर उदाहरण प्रस्तुत करने में सक्षम है गदद की सम्पन्नता के ग्वधरन एलर्क देखे जा सकले है। (.) उज्जयनी नामि नगरी तरिठे मोज्देव राणा। तीहि तपइ पंचा समा
पंडितह माहि मुख्य धनपाल नामि पंडित। ती बप धरि अन्यदा कदाचित्र मा विरहिम निषिन्तु पापंडिसहमी भाग श्रीजा दिवसहनी बधि ले लीलीई काई तिषि प्राविधिया विराल पारी मेर नून प्रशिया पियामा विवामी शितिमि ब्राहमनी पिलं, जोगा दिवानी यषि । अनिमा का मीरा पंडित धनवाति मावि रविष्टि इस बीग विwिs far कारा मवावि उपविष्टि की। विवादित किरिबाला नीवरिया निवासी बधि बियइ छ। अममा महानि नीपि गावि महामुनि प्रतिया। मा बिपिन बिकामानिति माणिक वीग दिवाली
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रावस्थान भारती-भाय : अक १ जनवरी,१५१.३.१- पर श्री सरवन्दनाबटाका धनपाल कथा-कीर्षक लेखा।