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४- मोग परिमोम ब्रतु दिवविध भोजनात कर्मत भोजनाताई इविध मोगा
एक बार भोगक्यि । आहा. बोहरू, विलेपर्नु परिभोग व प्रभु मोगावियह। पवन बित्तयामरण वयाक्खि --- सहि परिभोग निमेष
५. 7 वारह विध श्रावक धर्म होइ। धर्म म्याच कि बरिईदेवी
गुमी शाहको विणाय महापका • अरिहंत देवता किस होरर कमीज अतिशय संथास्तु अष्ट महाप्रतिहार्य
कृत शोभु अष्टादश दोष रहितानीगानिदोशासर्वज्ञ और अंत में कृषि का उद्देश्य त उसी मुरुम संवदा निम्ना कित गइयांश द्वारा समाप्त होती है:. बारह पै ता कीजय। जसरी भेदै जमु पालिवइ । आप्रवचन मावा उपयोग दीजह। रजोवर। महती गोडापडिगाड पर I७।।
एवं तत्त विवार रइयं मुय सागराइ परिय धोबक्सरं महत्थं पम्वाण मशगट्का ।।
तत्व विचार प्रकरण समारतमिति ।।७।। उक्त सभी उद्धरणों में यह स्पष्ट हो जाता है कि अति धर्म प्रचार, चरित्र संवम और उपाचार के परिपालना सिखी गई साथ ही बान, बाबा ग्रा, मरिहंत आदि मूढ बातों की सरल र व्यक परिमापार भी मेक ने दी। अवः स्पष्ट है कि लेखक ने बह रचना जन साधारण के सिप लिदी है।
साथ ही जैन धर्म व दर्शन की कठिन मानों को भी कवि ने जन सापार के लिय बनाने का उत्तम प्रवास प्रश्नोतर जैसी को अपना कर यिा है।
प्रस्तुत रमा मान विक पार्मिक होने से ही इसमें विभिन्न तत्वों काले में
विमा सकी पद्धति पहले प्रश्नसमें एक सून रख कर रकी माया करने की है।
बाप विचार प्रकरण में हमें कोई भी क्या था खलाबद्ध वर्णन उपलब्ध नहीं होने और उपलब्ध गदा में एक उत्कृष्ट गझ्यात्मक साहित्य का अभाव है