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दोनों कृतियों में अपांव के पाइभव व प्राचीन राजस्थानी ग पुरानी हिन्दी के शब्दों का बाहुल्य देखा जासकता है। दोनों कृतियों के दो उदाहरण यही पल पाच हो:. रसत्याग, काय कि तेजना कीधी नहि या प्रत्याख्यान एकासमा
विपरिणड्ड साढयो रिसिपोरिसि भैगु अविचार मीनिमावलि उपवास की पर विराबई सचित्त पानी पी एबह प दिवसमाहित
उक्त उदाहरण में अधिकार अब प्राचीन राजस्थानी है बारा रसारण बत. पुषावाद व्या विरमय के अतिवार से सम्बन्धित है।
मुकावादि- सहसाबारि भालु अभ्याख्यान दीडं, रडसमन भेद कीया, पोपदेश दीघर, कूड लोड लेखि, दिसापि धापपि भोसल कुपड हट राडि मेडि का मिटा कोई अविचल वाविवृति भबसगाइमाहिदुर विविध विविध मिच्छामि इकाई इब हिया पाहि सम्यमत्य धरल, अरिवंत देवता मा गुरु जिन प्रणीत धर्म, सम्यकत्व दंडक अवरव, हिव अठार पाप स्थानक बो मिराक,
बाराना की भाषा मे तुलना करने पर इन दोगों विवारों को की भाषा में बाबही तर स्पष्ट होने ज्यवा उक्त दोनों अस्विार जक रनामों में मार प्रधान ली कम होती गई है। माय छोटे, सरस और प्रवाह मिषा अधिकार प्राचीन राजस्थानी मागो प्रयास से ही परक पदव का वा माया बर्व विषय धार्षिक होने से भले ही गोड़ी कठिनाई उपस्थित हो सकती है परन्तु वा समय की बरसा और मी जी का प्रस्न वा परिलक्षित हो बाबा हिय की बरलवा और भूपति बायकोला या प्राचीन राजस्थानी मदों के बाहत्व कीष्टि है दोनों रसाप मावि समय बी जैन साहित्य की बात की महत्वपूर्ण रचना मानी शादी। •ाीमराज Ta
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बडी पृ०॥