________________
६४
(९)
थे । (११६५-१२०३ ) । इन्हें पृथ्वीराज ने हराया। परमाद्रि देव ने कुतुबुद्दीन एवक से भारी शुद्ध किया। पर अन्त में वे हारे। चंदेल के प्रसिद्ध स्थानों में प्रसिद्ध कलात्मक स्थान जैव मन्दिर तथा बजुराहों और कालिंजर के दुर्गों को नहीं भुलाया जा सकता।
परमार वंशः
अन्तिम वं मालवा के परमारों का था । पहले परमार शासक उपेन्द्र प्रतिहारों के आधीन थे। उनके निर्बल पड़ते ही (सन् १५०) में मालवा के परमार राजा स्वतंत्र हो गए। प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी महाराज मुंज (९७४-९९८) इसी वंश में हुए मुंज ने हमारे देश को बड़े बड़े विवान साहित्यकार प्रदान किए। इनके दरबार में नाट्यशास्त्र व दशरूपक के प्रसिद्ध लेखक धनंजय तथा दशरूपा व लोक लेखनी के धनिक थे। गट्ठ हलायुध जैसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व इन्हीं के दरबार की उपज है। मुंज की इस रही सही कमी को इसी वंश में होने वाले महाराज पोज ने पूरी कर दी। इनके राज्य में परमार वंश की प्रगति चरम पर पहुंची।
मोज साधारण विक्रानुरागी और संस्कृत प्रेमी थे। मोज के भाई उदयादित्य का बनाया हुआ उदयेश्वर का मंदिर उदयपुर के पास बड़ा है। मोज ने अनेक संस्कृत में रचनाएँ लिखी है। मुंज और भोज दोनों बाबा भतीजे संस्कृत प्राकृत के साथ देवी मामा के प्रेमी है। एक भोजवाला नामक प्रसिद्ध विद्यापीठ मी मोज ने बनाया जिसको बाद में मानों ने मस्जिद बना लिया। किर (१३०५ ) पर काउद्दीन बिल्ली का शासन हो गया। गुजरात के सोलंकी
राजा दोन वेदि के क्लरि राजा कर्म ने तुर्कों से कई राज्य वाि लेकर उत्तरी राजस्थान के रास्ते विन्ध तक धावे कर उनसे लोहा लिया। नवन्ति के अतिरिक्त दहपुर (नववीर) और मेवाड़ का अधिकार भी परमारों