________________
विषय:- उपासना, आत्मग्लानि, पाप स्वीकृति, मानस विज्ञपि दुष्कृत्यों का परित्याग महापुरूषों के उच्चतम गुणों का स्मरण तथा अपनी
बुता पर विचार और आराध्य की आत्म समर्पण की इक आराधना के प्रमुख वसूर्य विषय है। संभवतः यह भी कहा जा सकता है कि विवय
८७८
वस्तु के आधार पर ये गद्यात्मक संज्ञा कालान्तर में महय वर्णन की पद्धतियां हो गई होगी।
विषय पर्व शिल्प की दृष्टि से आराधना और अतिचार संशक रचनाओं में पा साम्य दिसाई पड़ता है। माराधना के कु उदाहरण देखिए:
ज्ञानाचारि पुस्तक पुस्तिका संपुट संपुटिका टीममा कक कमली उतरी ठवणी पाठा दोरी प्रभृति जानोपकरण अवका अकालि पठन अतिवार विपरीत कथन उत्सूत्र पुरुपण अप्रधान प्रकृतिकु आलोबहु । सम्यक्त्व प्रतिपत्तिकर, हरिहंतु देवता साधु गुरु जिन प्रणीत घ सम्यक्त्व दण्डकु उचरहु सागार प्रत्यासानु अवरह, चऊहु सरनि वयसरछु । परमेश्वर अरहंत सरणि सक्ल कर्म निर्मुक्ति सिद्ध सरणि संसार परिवार enary मान पात्र महासत्व साधु सरणि सक्ल कर्म निर्युक्त सिद्धसर वि Bure परिवार समुचरण यान पात्र महासत्य मा तरपि स पाप पटल क्वल नक्लक कलिद्ध केवल प्रथीद्ध धर्म बरनि विष संवि वृक्ष बाबापाच्या सर्वसा प्रतिणी श्रावक प्राविका इहज काइ काइ आला की विवाह मियानि टुक्कडं ।
२.
I.
पंच परमेष्टि नमस्कार रवि हि विशेष स्मरेका, जमर परमेश्वर होकर देवि इस वर्ष विकट छ नई संसार प्रतिम करिया, अनइ रुचि नमस्कार इहलोक परलोक संपादिवइ । आराधना समाप्रेति ।।
•
१- प्राचीन ईर काव्य संग्रह २- प्राचीन गुजर काव्य संग्रह
०८६ ० ८७ ।