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जे संसार अस मुति से इत्थ पवर मत्तीय सूरीस पायमूले चरण सेवंति निस्संक
सफाय मूलक प्रतिगान "स्वाध्याय" से बने हैं ये रचनाएं नित प्रति पाठ की जाती है। उक्त सब रचनाएं जैसलमेर वृहद् ज्ञान भंडार की व अपयजैन ग्रन्थालय की है। इस प्रकrest स्तोत्र स्तवन संज्ञक रचनाओं का सबसे बड़ा वैविष्टय यह है कि वे विविध प्रकार की मिलती है। वैविध्य आविकालीन हिन्दी जैन रचनाओं की प्रमुख विशेषता है। काव्य स्मों में विविधता शिल्प वैशिष्ट, छन्द वैविध्य आदि सभी हिन्दी जैम रचनाओं में मिल जाता है। ये सब रचनाएं भक्ति और श्रद्धा से आज भी गीत नृत्य के साथ मन्दिरों में गाई जाती है। विविध बार्बी से इन स्तोत्र स्वरवनों व गीतों द्वारा आनन्द की पुष्टि होती है।
काव्य की दृष्टि से बहुत कम रचनाएं ऐसी है जिनका काव्यात्मक महत्व हो, ये स्तवन साम्प्रदायिक दृष्टि, धर्म प्रचार, उपदेश तथा नीति रूप में बहुधा जन पाषा में लिखे गए हैं। अतः काव्य की दृष्टि से इनका महत्व साधारण है।