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काव्यात्मक वर्णन इस स्तोत्र में मिलेगा। माया प्रवाह पूर्ण व सरस है:
बरकम कलम परि कुंड मइव महिम होबा मेमि कुमार
मि कम्पूरी कधूरी दणि अंगि बिलेवा मारू रव पथ पड्डल बेल वाल, सिरि पुपडि परिव रागी निय निय निय बाडिती सूर नगा बह इस परि नव नब अंगी बहि दोदों विलि बन्या पौधों मृदंग सुम
क्रिडिडि हिडिडि डि हिडिडिडि महरिडि र बागि यहि आयुब मुसरं रि बत्यक मुनक
बाहिरि
कटक्ट टिम क्ट 'टिम टिटिम टिटिम रिग षडाला उत्साल छल छल छल छप छपा साल मुबी बाल जति तक रुक गल मपहर महरि मगम करि
ताहि नचाहिं नाटिगि धोंगिनि अपर भगभरिया कारि इस प्रकार इसी नावात्मक बन गाथाओं में यह बोठी समाप्त हुई है। स्तवन वर्ग वोतिका संसक बना विशेष सरस मे विविध बाइयों के समीर पूर्व तथा भाकारिक है। इसी पर कई अन्य बना विनका बाशिक परिक्य मोहो पाया।
कि निधि
हर किया वीनंती करमा गम होती है। समाई
सिमानामा पक्की लगाम रसायन री प्रार्थना बनकर अभिव्यक्त हुए है। रमाएं की सामान गावपूर्व मन्यात्मक स्तोत्र । इनका उद्देश्य भी धार्मिक पुत्रों या निन्द्रोंग सलमानरमानों की भाषा प्राचीन राजस्थानी है। रिना मा लेखकों की प्रतिया जैसलमेर बैग भन्डार था अभय जैन