________________
८६१
मय नई वन वित्थ जल पूरियां, दूर रव दूर पूरंत वर चूरिया मेरुमिवाविया देव को डिडि क्य क्लस कोडीयम
महूर गायेति बहु किन्नरी समपुरा, लंकिया किन किन्नरवरा बेसरा विउल दल कमलकेल कोमला मलकरा. किरण रमणीय रमणीय रामणवरा इस प्रकार रचना अनुप्रासात्मक और सरस है।
ानT
के अभिषेक का प्रशस्ति गान है। रचना की भाषा और शब्दों की अरवानात्मकता और कन्यात्यकता दृष्टव्य है। लेखक प्रशाद है। रचनाकाल
१५ दी है। वर्णन की नादात्मकता देखिए
● धन रवण रुन्य मिय कणमय क्लासिहि हवन करेवि लड़ पंच वन्न कुमिहि महिवि हरिसिय सुर नवंति मह gaf gगि पुगि पनि घोंग घोंघौ मिम मात कटटिम कटटिम टिटिम टिटिम बहु पढ किमि नि मि मा
सम
छलपल उपल कंसारमय बब्जिय
इसी तरह रचनाकार ने गीत को संगीत व वाक्य प्रधान बनानेके लिए अनेक नृत्य safe asदों का प्रयोग किया है। रचना की अलंकारिकता इष्टव्य है।
मादिनाथ
चिय
इस पद में भी उस रक्ना का ही अनुगमन है विलय संज्ञक रचनाएं समभव सभी एक ही प्रकार के लिखी गई है। प्रति मन प्रन्थालय में है। रचना मेय व संगीत सत्य प्रधान है। रचना ११वीं शती की व रचनाकार अज्ञात है। इसमें भी ध्वनिपूर्ण खुद का चक्न देखिए: