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रस ही सर्वत्र निष्पन्न होता है। यो उत्साह भाव का इसमें बायोपान्त संभार हैमर वाक्य के समय कवि का निर्वेद भाव निम्न हो जाता है। रक्ता गेय है arr ऐतिहासिक कथा वस्तु से सम्बन्धित होने हुए भी काव्यात्मक, तथा स्वडनीय है। संक्षिप्ता उसका गुण है। प्रत्येक पद अपने में स्वतंत्र है। रचना मुक्तक गीति है, जिसके प्रत्येक पद में अपना अपना स्वतंत्र भाव है।
पूरी रचना रोला में रखी गई है। माँ रोठा अपमंत्र का अत्यन्त प्रसिद्ध है, जो अपके किसी भीगीति मुक्तक में देश जा सकता है। freen: रचना साधारण होते हुए भी अनेक कारणों से महत्वपूर्ण हो गई।
| सत्यपुरीय महावीर उत्साह की भाषा !
"सत्यपुरीय महावीर उत्पाह की भाषा के विषय में विदवानों में परस्पर मैदा व तादी की होने से भाषा की जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है। तत्कालीन भाषा का स्वम उसका पुरानी हिन्दी की ओर या तत्सम वदों की ओर बढ़ने का प्रयास, लोक भाकाके खुदों का उसमें समावेश तथा अपात्र की उत्तरवर्ती स्थिति आदि सभी महत्वपूर्ण तत्वों का समावेश धनपाल की इस रचना में उचित है। समपुरीय उसा एक ऐसी कही है जो परवर्ती अव को पुरानी हिन्दी या देशी पावा नाका वितान
है।
की दृष्टि से भी रचना महत्वपूर्ण लगती है। इस रचना की भाषा के विषय में बवानों में मतैक्य नहीं है श्री मुनिनि विजय जी * तथा श्री के का० शस्त्री*
१- देविय भाषणा कवियो
१०४५:श्री का स्त्री ।
२० नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष मंक में श्री नाइटा जी का लेख-वीरगाथाकाल का जैन माया
३- नाहियो
० २४४ ।
४- माया कवियो
१९०३ सत्यपुरीयमहावीर उत्साह परिचय
पर श्री स्त्री जी लिखते है कि यहककि मालवपति रोज की वन सभा में अग्रणी था। इसी कवि गाथा का सत्यपुरीय महाबीरोसाइडन नामक अप काव्य रचना है।