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जा सकता है क्योंकि मानन्द तिलक से ज्ञान तिलक की संगीत ठीक बैठती है। पर इसका परिहार श्री अमरबन्ध नाहटा ने निम्न पदध से कर दिया है। भारम्भ- विवाद सामवाणिण सहसो ()
महादि सो पूजाया भादा मगन मंडल धिरहोड आया महादिवइ बामिया
भादा जिणि बरसाविक भेउ भाषदा | ----- महापंबि बाका
जाषिक पपइ महादि देव, जापिठ पात मेउ आदा ॥३॥
शनिष्कर्ष से उन्होंने इसके रचयिता का नाम- महाबंद देव बहानंद देव किया है नामकरण कहा तक सही है बात निश्चिम पूर्वक नहीं कहा बा सकता। परन्तु नाइटागे का यह मत बातम्भव है कि यथार्थ के निक्टये। जो भी हो, इस सम्बन्ध में रचयिता का नामकरम सम्वेद से परे नहीं कहा जा सकता।
रचना के पिता की मावि इसकी भाषा और रचनाकाल मी मक्य बाला नहीं है लीमा इसकी भाषा को अमर कहा था इसका रचनाकावी वादी बवामा है। इसकी भाषा वास्तव में प्राचीन राजस्थानी है।' और रणना की नाम को देखकर यह कहा जा सका किया
वी वादबी की रचना होगीको कि इसमें आपका जनभाषा के साथ सुन्दर समन्वय स्पष्ट होग है।
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१-बी, 10..पर नाटा जी का लेख। बीरवानी
• ९८॥ श्री बगरमा गया कि-इसकी भाषा को कासलीवाल जी ने अलावारिस प्राचीन राजस्थानी या प्राचीन शिबीकहनाषिक डिजीत होता है।बदमपि यह अपशबात मिटीबाही र मह प्रयोग परवर्ती ठोक भाषा के बनता पाये जाते