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नेमिनाथ फाम बारहमासा।
पारा की इस अपूर्व कृति के पाबा वीं शताब्दी में काग में लिली मई एक बारहमासा काव्य-नेमिनाथ काग बारहमासा- उपलब्ध होता है। इस बारामासा के रचयिता कमि है। पूरी रचना १ माथायों में पूरी ई है। कवि ने स्वयं अपना नाम में स्पष्ट कर दिया है.
कान्ह ममा पनि राइमा मेलि तोर शामि
माड पर्वर प्रीडी विविध उपरिणाम प्रस्तुत काम में गम में ही लिया गया है। इस
राग और मारामामा दोनों काब्य प्रकारों गुण विद्यमानी। रचना काव्यात्मक स्या पर्याप्त सरस प्रतीत होती पा सक और जन साधारण की है।पूरा काय बड़ा ही बस का पड़ा है। कवि ने मेमिनाथ के तोरण से भाग जाने के प्रसंगी गाय प्रारम्भ किया है। माना की प्रामाविका इष्टव्य है
हे बोरम वाम बावीर यादव के बंद
पा देवी रथ बाली विश वमित विद ) अधिकारी राज, अकेली राल और मोरोंका मधुर बोस पब उसकी पीड़ा है मे। विरामीकमाया। पापी बिरामे बाव, से पुरी बस सवा सावन में रखको दूर किसान पारसक गरवार मरासिन्याट और मोका मिरा का बाप जोर देषि
गिरिधारी पाटी पर वार मोर
मिसबाह पापीर बाजीगर (0 और बागवान या पटानों की बरसा देश मौरी (A) मा सोराबोर हो गया। मोर भाई वाको
मी मोटी पाणिगोर के मन मा करोमेष मस वरसो।
-नादानीबार की प्रतिमा १५-१७॥
र कमियोपी मोनकासीमन्दधाई पाम पू. १४८२॥