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में बल्लामाह समद काली, महम्मद पुरमही अहमद सैरासाह आदि मे १९९ पदयों तक के बड़े बारहमासे लिखे है। नादिकालीन हिन्दी जैन काव्य में उपलब्ध मारहमासों में कु का विक परिचय यही किया जा रहा है:
सेमिनाथ सुम्यादिका
नेमिनाभ बम्पदिका ने ही हिन्दी साहित्य में सर्वप्रथम बारमामा को प्रारम्भ किया है। मे भिनाय बम्पदिका राजमती के विरह और विप्रलम का एक रंम चौध है जिसमें कवि ने राजुल के विरह को अपूर्व तल्लीनता क्या काव्यात्मता सेसंजीगर है। रचना के काव्य पर पूर्व बम्पविका संजक रवनाओं वा अध्याय में प्रकाश डालामा चुका है।
- नेमिनाथ बारहमासा राम्रो ।
१४वीं वाइवी के उतराईघ में यह रमा मिली है।यह बारहमासा अपूर्ण है। रचयिता का नाम पालम है। प्रस्तुत रचना की प्रति १५वी ताब्दी की उप म त रचना १४वीं जवाबूदी की ही हो सकती है। रमा
कि पीने साब पीantertam - भार मार पौष की मिसारमा की पाना परसबार बार का मामा है। क रन
का यदि राय होता तो रखना काय ललित्य मार
मारण्या लिपी गोपी परिया प्रानसागभयान और पापा परिवतिय पनि हो
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बीगर में पुरविता