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मुराकळी रेया।
॥ गाधानों में किसी एक ब रमा पुरावली रेल्वा मिलती है। देवी रेलया में लिखी यह लोक गीति मुलक रखना चोममूर्ति की है। प्रति जैसलमेर के दुर्ग बंडार में पुरवित है। मुावती पटावठी की मावि जैन गुन्गों के का वर्णन है। वन माध तथा प्रवाहपूर्ण भाषा की दृष्टि से रखना सरत है। भाषा की परलबा और काव्य का पुरावलीन दृष्टस्य :
मरजा पहाण गुजरियहा विव कि उ विय लोबमार ए मुक्ति रममि जिम मह बरे वाचली )
जब अंगई विवरण मिशेष अमि जिल बाचारिक नव किरि अभियाई जम परागण ममारि को गाय #ज र वार्षिक यो निम बडु इलाज हरि सिर ढक का निमाड स संग बह निम्मलन तिहुयन मबहरू वा नाभि इरिया नाद (४)
बामा निमा नयाय बाय बर पर शापि नाति भूरि यो नि मायापति परिपुरि बह र मिति विनिमावि गोमन सब बा जिन पर रिवीह पाना भाव (0-60 कम पुरावळी को मनाth. सा पुरावाहिको पढायो मनि पारसी से वाया
बोक्ष मारोबारा बाकि देर (10 इस अयमा परम्परा मान रेवा में होने से इस रचना का माल पुरानी या प्रकार रेखमा तक रखना होटी, बेय wrm ग निर्मित प्रधान है। कामी इष्टि
मा बाधा की और की कई रकमा तिमी जिनमें के at ( चिरसि पुरावळी नियईधमान मणि विरचित