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________________ ও ও ও दृष्टि से यह रचना साधारण है पर लोक मीत की भाति गाये जाने के कारण यह एक प्रकार के पद की भाति प्रयुक्त होने लगी और प्रारम्भ में चली और फिर एक उसी झी को बार बार इहराया जाने क्रम मिलता है। गालियन के अनान कर देवलोक पहुंचने के सम्बन्ध रचना १ छंदों में समाप्त हुई है।रचना अझ्यावधिवप्रकाशि। मूल प्रति कलमेर भंडार में है Om की प्रति लिखी गई है। रचनाकार अशा रमा ४वीं शताब्दी की लोक पाषा मूलक : लन सोसिय गरीर अविर विडिल देहडिया दवे दड चना माइए सालिम अभद्राधरे पाता तक किपि न लघु जब देव मुनि मल मतिम गात्र के संचारिया पहना उडटर दकि सिरि विरवहनारि असीमि दीन सालिमा उरबसी पलोट प का उपE पारि णिधिन इस पर बीवियर भसमुपहिया गय मारिनेमारि कार समिति प्रमणि ठियवर भाषिक माता पब मारि मय दामपि न मार द्वारा पुड्क बहु सिगारि कारिवीर विवि इनि म मे रिवार (an का मिला मायामा मनात विरिया व होगी बोडियम बना . इस प्रकार पूरी रखना बरिस्का को मान । काय की दृष्टि में ऐसी रमानों का नामावam माटी व शा भाषा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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