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________________ ७६२ जो बार बरस परि भोग पुरन्दक अमरजेम प्रयत्न नव जुम्वनि कोषा के बर कामिपि क्सलिपि रमरसि रत्न ता र विकास महारण सामरि माविका वि सिरिया गणि राउ पसार मावि राया पर भवि गमय जवितु वायपि विपि वाया मरतु सुगामि पनि चिन, चियि यह बाक अधिकार मार पर बप्पा मार लिया गम मा (1-1-) यमशील प्राय करने पर स्थमिद ने अपने गुरु से प्रार्म बानाय कौशाही भरने की स्वीकृति मांगी। वैश्या भी उनको पुनः प्राप्ति की कामना से अपाने आई। पुनि करने के लिए विशालागारी गई। वैश्या कोशा ने अनेक श्रृंगार किपाकवि ने यह वर्षन अत् प्रागसि ढंग से किया है। वैस्या कोश का उल्लास देखिए: बरसाता भिवर सिंह अभिगा पिक्सवि भव उहाधि वो मयनराय परिभ समरंदर इम पड मुरुपाधि पा करि पसार बार समप्पट रहिल पा उमावि मोम रस मिहिमवनव पंमिति कोस बेस आवारि (५-६) भावर रागिरि इणि नापि यनि विरोषसि विटि मिस भरवारि पापाप बानि एम कामि नम्बा बामवि सम्वीनामि कि भारत महा का प्रशिक्षिय मिलब, a fमारि नारि कनिमय बालबालिका (८-१) मेगामारी का निशा कोश का तिm तर पर पाप बि विविध शाम और परिधान और तिरीर सागरम भवानी विमिष बटायर वाटी मारा सलीका लागि बादिमी बन कवि ने सरळ भाषा मेमन या प्रासादिक वर्णन कम में गाये है भाषा की स्खलता और
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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