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अब बात सम्भव है कि यह विधा बन्द का ही दोहा के मूल में रहा होगा। विधा का वात्पर्य है दो प्रकार है। अयाद दोहा क्योंकि दो पक्तियों में लिया गामा अवउसका नाम दोहा कहा जाने लगा होगा। वस्तुनः उक्त सभी विचार किची ठोस प्रमाण की प्राप्ति के बिना अनुमान पर ही आधारित है। अपर में पुनि योगीन्द्र पनि रामसिंह देयोन ने खूब प्रयोग किया। वीं अबादी में नारेश्वरहरि की संखम बरी में भी इसका प्रयोग मिलता है। हिन्दी मे याय नपाको लिया। हिन्दी साहित्य के प्राध काव्यों, सतसई मादि मुक्तक काव्यों दोनों में वह द सफलता में प्रयुक्त हुया है। भाव भी दोहे की परम्परा प्रचलित है।वस्तुतः दोहा हिन्दी साहित्य की अनेक कृषियों में सफलता से प्रयुक्त मा प्रमुख सन्द है।
माग दोहा
यह उपदेश प्रधान काव्य है और दोहा में लिखा गया है। इसमें ५१ अक्षरों को लेकर पूरी रचना में भागार विचारों का, संसार, नर, नारी,लिग काम, मानन्द आदि का बर्मन सि रचना प्रकाशित है क्या लेक वारा इसका विस्त किन माका परम्परा और बारनामों सीन में पूर्व अध्यायों में किया था । इसी परम्परा र मिनार को विविध टानों और बसों मारा बार की नाबरता, कलियम जीव गम माविका किया है। नागर श्री भारतीय प्रतीकविमा खरा नाम राकिलास मी दिया। दोग होने वाला प्रवामपूर रस बन पड़ी है।
सारी दी। इस मामा बोगी।रना महान्द्र इवारा रचित मानवी का उत्सराध है। प्रतिपरिणय इस प्रकार
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